Copper, Nickel, Zinc, Lead, Aluminium all Metal on earth
Neal Bhai | The Real Commodity Guru
9899900589 AND 9582247600
Save
15 thoughts on “MCX Lead Zinc Pani Pani Call Enjoy Bloodbath”
अनाज हो या सब्जियां, देश में बंपर पैदावार हुआ है। लेकिन इसके बावजूद किसान परेशान हैं। पिछले दो साल अच्छा भाव मिला लेकिन सूखे और बेमौसम बारिश से फसल मारी गई, तो आमदनी पर असर पड़ा। इस साल जोरदार बुआई हुई और मौसम का साथ मिला तो भी कमाई मारी गई। हमने देश के कई हिस्सों से खेती और किसानों का जायजा लिया। सभी जगह किसानों की बेबसी दिखी और यही बताने के लिए हम लेकर आए हैं ये खास पेशकश।
किसानों की आमदनी दोगुना करना सरकार का मकसद है। ऐसा खुद प्रधानमंत्री कई बार बोल चुके हैं। लेकिन फसल ज्यादा हो या कम किसानों की आमदनी बढ़ने का नाम नहीं ले रही। जोरदार बुआई और शानदार मौसम ने इस बार सब्जियां हो या अनाज, सबके भाव पर जमीन पर ला दिए हैं और रही सही कसर नोटबंदी ने पूरी कर दी।
किसानों की आमदनी दोगुनी हो, प्रधानमंत्री का सपना नहीं दरअसल इस देश की जरूरत है। लेकिन किसानों की मौजूदा हालात से प्रधानमंत्री के सपनों पर सवाल खड़े हो रहे हैं। आलू हो या प्याज, टमाटर हो या अनाज, किसान हैं बेहाल। इस साल पहली बार देश में 27 करोड़ टन से ज्यादा अनाज की पैदावार होगी। गेहूं की 9.5 करोड़ टन से ज्यादा पैदावार की उम्मीद है। दाल की पैदावार भी 2 करोड़ टन के पार जा रही है। सरकार इस बात से खुश है कि महंगाई से मुक्ति मिलेगी।
किसान, क्योंकि गेहूं हो या अरहर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य निकालना भी मुश्किल है। सीजन से पहले ही सरसों एक साल के निचले स्तर पर है और मध्यप्रदेश के किसानों को पिछले तीन साल में सबसे कम सोयाबीन का भाव मिल रहा है सरकार का दावा है कि मार्केट इंटरवेन्शन जारी है। लेकिन असर कहीं दिख नहीं रहा।
दो साल सूखा पड़ा और किसानों के मेहनत का पसीना भी सूखे में सूख गया। फिर भी खेती जारी रही। इस साल मौसम ने साथ दिया तो बंपर पैदावार और कीमतें जमीन पर यानि परेशानी का नया अवतार। प्रधानमंत्री को किसानों की चिंता है, लेकिन कृषि बाजार पर राज्यों का आधिकार है, लिहाजा केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय कृषि बाजार को जमीन पर उतारा जरूर है, लेकिन काम आधे-अधूरे मन से हो रहा। मुश्किल से 250 मंडियां इससे जुड़ सकी हैं और देश के पूरे हाजिर कारोबार का 1 फीसदी से भी कम इन मंडियों में कारोबार हो रहा है। ऐसे में 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी होगी एक बड़ा सवाल है।
सरकार का दावा है कि वह पहले खेती के क्षेत्र में स्ट्रक्चरल बदलाव लाना चाहती है और इसी के तहत फसल बीमा, सॉयल हेल्थ कार्ड और नीम कोटिंग यूरिया को लाया गया। लेकिन सवाल ये है कि इसका फायदा कितना हो रहा है, कब तक होगा। क्योंकि देरी जितनी होगी, बीमारी बढ़ती जाएगी। सब्जी किसानों का हाल तो इससे भी ज्यादा खराब है। आपको पंजाब के लुधियाना ले चलते हैं। बंपर पैदावार ने इस साल आलू के किसानों की कमर तोड़ दी है। आमदनी तो दूर लागत निकलना मुश्किल है।
लुधियाना के किसान भूपिन्दर सिंह के लिए 17 एकड में आलू लगाने का फैसला अब मुसीबत का सबब बन चुका है। पिछले साल 800 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिला था, लेकिन इस साल 180 प्रति क्विंटल मिल रहा है। इतने भाव पर फायदा तो छोड़िए लागत का आधा भी नहीं वसूल पाएंगे। जिन लोगों ने लीज पर जमीन लेकर फसल बोई उन्हें दोहरा नुकसान हो रहा है। इधर कोल्ड स्टोर वालों ने भी मौके देखकर भाड़ा प्रति क्विंटल 40-60 रुपये तक बढ़ा दिया है। ऐसे में किसान चाहते हैं कि सरकार कम से कम निर्यात की इजाजत दे दे, ताकि नुकसान से सुरक्षा करें। किसानों का मानना है कि नोटबंदी के चलते हाथ में कैश नहीं है और दूसरे राज्यों के व्यापारी पंजाब नहीं आ रहे हैं।
आलू हो या प्याज सबकी कहानी एक है। पिछले साल 400 रुपये प्रति कैरेट बेचने वाले टमाटर के किसानों को इस साल इसकी 60 रुपये बड़ी मुश्किल से मिल रहे हैं। देश भर के टमाटर उत्पादक किसानों की मुश्किल खत्म होती नहीं दिख रही है। हालत इतनी खराब है कि किसानों की लागत निकलना भी इस साल मुश्किल हो गया है। 1 कैरेट टमाटर का भाव पिछले साल 400 रुपये तक था और इस बार 60 रुपये से ज्यादा नहीं मिल रहे हैं। क्या करें और क्या नहीं किसान को समझ नहीं आ रहा है। और शायद यही वजह है कि कुछ शहर में किसानों ने हताश होकर अपना माल रास्ते पर फेंक दिया।
टमाटर की सेल्फ लाइफ कम होती है। आजादी के 60 साल बाद भी देश में स्टोरेज की उचित व्यवस्था नहीं है। लिहाजा किसान अपनी मेहनत से उपजाई टमाटर की फसल जानवरों को खिलाने को मजबूर हैं। टमाटर के बंपर उत्पादन ने किसानों को अपनी फसल सड़क पर फेंकने को मजबूर कर दिया है। उत्तर गुजरात के गांवों में रोज हजारों किलो टमाटर सड़कों पर फेंके जा रहे हैं। मुनासिब भाव ना मिलने के कारण किसान ऐसा कर रहे हैं।
टाटा नैनो प्लांट की वजह से मशहूर साणंद के आस-पड़ोस के गांवों में किसान टमाटर बाजार में बेचने के बजाय जानवरों को खिलाना बेहतर पा रहे हैं। वजह है, टमाटर के दाम में आई भारी गिरावट। थोक मंडी में टमाटर के भाव 1 रुपये प्रति किलो से भी कम हो गए हैं। गुजरात में करीब 50 हजार टन टमाटर का उत्पादन होता है। इस वर्ष इसमें 15 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। उत्पादन बढ़ने के अलावा पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों को होने वाला एक्सपोर्ट भी बंद है। घरेलू मांग भी कम होने की वजह से किसानों के पास ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं।
किसानों को 25 किलो के बॉक्स के लिए केवल 20 रुपये मिल रहे हैं जबकि टमाटर रिटेल में 20 रुपये किलो बिक रहे हैं। ऐसे में किसानों को उम्मीद है कि सरकार कम से कम ट्रांसपोर्ट में सब्सिडी दे दे ताकि इनका यह सीजन फेल न हो।
सरकार किसानों की इन्हीं दिक्क्तों को देखकर इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार लेकर आई है। लेकिन इसे लागू करने की रफ्तार बेहद धीमी है। कॉन्सेप्ट अच्छा होने के बावजूद इस पर तेजी से काम नहीं हो पा रहा, शायद इसीलिए अभी तक ये किसानों पर अपनी छाप नहीं छोड़ सका।
राष्ट्रीय कृषि बाजार यानि ई-नाम। योजना है देश भर की मंडियों को एक प्लेटफॉर्म पर लाने का। लेकिन भारी जद्दोजहद के बाद अब तक करीब 250 मंडियां ही जुड़ सकी हैं। उसमें में चुनिंदा कमोडिटी ही कारोबार की सुविधा है, और टर्नओवर देश के कुल मंडी कारोबार का 1 फीसदी से भी कम। मकसद है, एक ही प्लेटफॉर्म पर देश भर के किसानों और कारोबारियों को जोड़ना। लेकिन किसानों को इस कॉन्सेप्ट के बारे में जानकारी ही नहीं, लिहाजा बिचौलियों के गिरफ्त से अभी भी वे बाहर नहीं आ पा रहे हैं।
अगर हम सरकारी वेबसाइट को देखें तो उसमें उदाहरण के तौर पर मेरठ में आज किसान मंडियों में आलू बेचने जाएगा तो उसे फसल की कीमत 440 रुपये क्विंटल मिल रही है, जबकि ई-नाम पर यही आलू 435 रुपये क्विंटल बिक रहा है। यानी साफ है की ई-नाम पर भी किसान को 5 रुपये क्विंटल दाम कम मिल रहे हैं।
भारत सरकार का दावा है कि दिसंबर तक करीब 9.5 लाख किसान ई-नाम से जुड़ चुके हैं। और 7,000 करोड़ से ज्यादा के सौदे हुए, जिसमें 35 लाख टन कृषि उत्पाद का कारोबार हुआ है। लेकिन करीब 7000 मंडियों वाले देश में ये बेहद छोटा आंकड़ा है। जाहिर है ई-नाम का सही इस्तेमाल करने के लिए बड़े प्रयास की जरूरत है।
अनाज हो या सब्जियां, देश में बंपर पैदावार हुआ है। लेकिन इसके बावजूद किसान परेशान हैं। पिछले दो साल अच्छा भाव मिला लेकिन सूखे और बेमौसम बारिश से फसल मारी गई, तो आमदनी पर असर पड़ा। इस साल जोरदार बुआई हुई और मौसम का साथ मिला तो भी कमाई मारी गई। हमने देश के कई हिस्सों से खेती और किसानों का जायजा लिया। सभी जगह किसानों की बेबसी दिखी और यही बताने के लिए हम लेकर आए हैं ये खास पेशकश।
किसानों की आमदनी दोगुना करना सरकार का मकसद है। ऐसा खुद प्रधानमंत्री कई बार बोल चुके हैं। लेकिन फसल ज्यादा हो या कम किसानों की आमदनी बढ़ने का नाम नहीं ले रही। जोरदार बुआई और शानदार मौसम ने इस बार सब्जियां हो या अनाज, सबके भाव पर जमीन पर ला दिए हैं और रही सही कसर नोटबंदी ने पूरी कर दी।
किसानों की आमदनी दोगुनी हो, प्रधानमंत्री का सपना नहीं दरअसल इस देश की जरूरत है। लेकिन किसानों की मौजूदा हालात से प्रधानमंत्री के सपनों पर सवाल खड़े हो रहे हैं। आलू हो या प्याज, टमाटर हो या अनाज, किसान हैं बेहाल। इस साल पहली बार देश में 27 करोड़ टन से ज्यादा अनाज की पैदावार होगी। गेहूं की 9.5 करोड़ टन से ज्यादा पैदावार की उम्मीद है। दाल की पैदावार भी 2 करोड़ टन के पार जा रही है। सरकार इस बात से खुश है कि महंगाई से मुक्ति मिलेगी।
किसान, क्योंकि गेहूं हो या अरहर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य निकालना भी मुश्किल है। सीजन से पहले ही सरसों एक साल के निचले स्तर पर है और मध्यप्रदेश के किसानों को पिछले तीन साल में सबसे कम सोयाबीन का भाव मिल रहा है सरकार का दावा है कि मार्केट इंटरवेन्शन जारी है। लेकिन असर कहीं दिख नहीं रहा।
दो साल सूखा पड़ा और किसानों के मेहनत का पसीना भी सूखे में सूख गया। फिर भी खेती जारी रही। इस साल मौसम ने साथ दिया तो बंपर पैदावार और कीमतें जमीन पर यानि परेशानी का नया अवतार। प्रधानमंत्री को किसानों की चिंता है, लेकिन कृषि बाजार पर राज्यों का आधिकार है, लिहाजा केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय कृषि बाजार को जमीन पर उतारा जरूर है, लेकिन काम आधे-अधूरे मन से हो रहा। मुश्किल से 250 मंडियां इससे जुड़ सकी हैं और देश के पूरे हाजिर कारोबार का 1 फीसदी से भी कम इन मंडियों में कारोबार हो रहा है। ऐसे में 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी होगी एक बड़ा सवाल है।
सरकार का दावा है कि वह पहले खेती के क्षेत्र में स्ट्रक्चरल बदलाव लाना चाहती है और इसी के तहत फसल बीमा, सॉयल हेल्थ कार्ड और नीम कोटिंग यूरिया को लाया गया। लेकिन सवाल ये है कि इसका फायदा कितना हो रहा है, कब तक होगा। क्योंकि देरी जितनी होगी, बीमारी बढ़ती जाएगी। सब्जी किसानों का हाल तो इससे भी ज्यादा खराब है। आपको पंजाब के लुधियाना ले चलते हैं। बंपर पैदावार ने इस साल आलू के किसानों की कमर तोड़ दी है। आमदनी तो दूर लागत निकलना मुश्किल है।
लुधियाना के किसान भूपिन्दर सिंह के लिए 17 एकड में आलू लगाने का फैसला अब मुसीबत का सबब बन चुका है। पिछले साल 800 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिला था, लेकिन इस साल 180 प्रति क्विंटल मिल रहा है। इतने भाव पर फायदा तो छोड़िए लागत का आधा भी नहीं वसूल पाएंगे। जिन लोगों ने लीज पर जमीन लेकर फसल बोई उन्हें दोहरा नुकसान हो रहा है। इधर कोल्ड स्टोर वालों ने भी मौके देखकर भाड़ा प्रति क्विंटल 40-60 रुपये तक बढ़ा दिया है। ऐसे में किसान चाहते हैं कि सरकार कम से कम निर्यात की इजाजत दे दे, ताकि नुकसान से सुरक्षा करें। किसानों का मानना है कि नोटबंदी के चलते हाथ में कैश नहीं है और दूसरे राज्यों के व्यापारी पंजाब नहीं आ रहे हैं।
आलू हो या प्याज सबकी कहानी एक है। पिछले साल 400 रुपये प्रति कैरेट बेचने वाले टमाटर के किसानों को इस साल इसकी 60 रुपये बड़ी मुश्किल से मिल रहे हैं। देश भर के टमाटर उत्पादक किसानों की मुश्किल खत्म होती नहीं दिख रही है। हालत इतनी खराब है कि किसानों की लागत निकलना भी इस साल मुश्किल हो गया है। 1 कैरेट टमाटर का भाव पिछले साल 400 रुपये तक था और इस बार 60 रुपये से ज्यादा नहीं मिल रहे हैं। क्या करें और क्या नहीं किसान को समझ नहीं आ रहा है। और शायद यही वजह है कि कुछ शहर में किसानों ने हताश होकर अपना माल रास्ते पर फेंक दिया।
टमाटर की सेल्फ लाइफ कम होती है। आजादी के 60 साल बाद भी देश में स्टोरेज की उचित व्यवस्था नहीं है। लिहाजा किसान अपनी मेहनत से उपजाई टमाटर की फसल जानवरों को खिलाने को मजबूर हैं। टमाटर के बंपर उत्पादन ने किसानों को अपनी फसल सड़क पर फेंकने को मजबूर कर दिया है। उत्तर गुजरात के गांवों में रोज हजारों किलो टमाटर सड़कों पर फेंके जा रहे हैं। मुनासिब भाव ना मिलने के कारण किसान ऐसा कर रहे हैं।
टाटा नैनो प्लांट की वजह से मशहूर साणंद के आस-पड़ोस के गांवों में किसान टमाटर बाजार में बेचने के बजाय जानवरों को खिलाना बेहतर पा रहे हैं। वजह है, टमाटर के दाम में आई भारी गिरावट। थोक मंडी में टमाटर के भाव 1 रुपये प्रति किलो से भी कम हो गए हैं। गुजरात में करीब 50 हजार टन टमाटर का उत्पादन होता है। इस वर्ष इसमें 15 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। उत्पादन बढ़ने के अलावा पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों को होने वाला एक्सपोर्ट भी बंद है। घरेलू मांग भी कम होने की वजह से किसानों के पास ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं।
किसानों को 25 किलो के बॉक्स के लिए केवल 20 रुपये मिल रहे हैं जबकि टमाटर रिटेल में 20 रुपये किलो बिक रहे हैं। ऐसे में किसानों को उम्मीद है कि सरकार कम से कम ट्रांसपोर्ट में सब्सिडी दे दे ताकि इनका यह सीजन फेल न हो।
सरकार किसानों की इन्हीं दिक्क्तों को देखकर इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार लेकर आई है। लेकिन इसे लागू करने की रफ्तार बेहद धीमी है। कॉन्सेप्ट अच्छा होने के बावजूद इस पर तेजी से काम नहीं हो पा रहा, शायद इसीलिए अभी तक ये किसानों पर अपनी छाप नहीं छोड़ सका।
राष्ट्रीय कृषि बाजार यानि ई-नाम। योजना है देश भर की मंडियों को एक प्लेटफॉर्म पर लाने का। लेकिन भारी जद्दोजहद के बाद अब तक करीब 250 मंडियां ही जुड़ सकी हैं। उसमें में चुनिंदा कमोडिटी ही कारोबार की सुविधा है, और टर्नओवर देश के कुल मंडी कारोबार का 1 फीसदी से भी कम। मकसद है, एक ही प्लेटफॉर्म पर देश भर के किसानों और कारोबारियों को जोड़ना। लेकिन किसानों को इस कॉन्सेप्ट के बारे में जानकारी ही नहीं, लिहाजा बिचौलियों के गिरफ्त से अभी भी वे बाहर नहीं आ पा रहे हैं।
अगर हम सरकारी वेबसाइट को देखें तो उसमें उदाहरण के तौर पर मेरठ में आज किसान मंडियों में आलू बेचने जाएगा तो उसे फसल की कीमत 440 रुपये क्विंटल मिल रही है, जबकि ई-नाम पर यही आलू 435 रुपये क्विंटल बिक रहा है। यानी साफ है की ई-नाम पर भी किसान को 5 रुपये क्विंटल दाम कम मिल रहे हैं।
भारत सरकार का दावा है कि दिसंबर तक करीब 9.5 लाख किसान ई-नाम से जुड़ चुके हैं। और 7,000 करोड़ से ज्यादा के सौदे हुए, जिसमें 35 लाख टन कृषि उत्पाद का कारोबार हुआ है। लेकिन करीब 7000 मंडियों वाले देश में ये बेहद छोटा आंकड़ा है। जाहिर है ई-नाम का सही इस्तेमाल करने के लिए बड़े प्रयास की जरूरत है।