कमोडिटी मार्केट में म्यूचुअल फंडों की एंट्री का रास्ता साफ

The way in the commodity market is clear about the investment of mutual funds. SEBI has set guidelines for this. Under this, funds are allowed to invest in commodity futures. In addition, Gold ETFs have also been included as derivatives products.

MFs will be able to invest in commodities through futures. They will not be allowed to shorten in the commodity. Apart from this, foreign investors should not have money in the MFs scheme. They can not even invest in the sensitivity commodity. In the commodity of mutual funds, the position limit will also be decided. Gold ETFs also get gold futures status under the new rules.

कमोडिटी मार्केट में म्युचुअल फंडों के निवेश को लेकर रास्ता साफ हो गया है। सेबी ने इसके लिए गाइडलाइंस तय कर दी है। इसके तहत फंडों को कमोडिटी वायदा में निवेश की इजाजत है।

इसके अलावा गोल्ड ETFs को भी डेरिवेटिव प्रोडक्ट के तौर पर शामिल कर लिया गया है। एमएफ सिर्फ वायदा के जरिये कमोडिटी में निवेश कर सकेंगे। इनको कमोडिटी में शॉर्ट करने की इजाजत नहीं होगी। इसके अलावा MFs स्कीम में विदेशी निवेशकों का पैसा नहीं होना चाहिए। ये सेंसिटिव कमोडिटी में भी निवेश नहीं कर सकेंगे। म्युचुअल फंडों की कमोडिटी में पोजिशन लिमिट भी तय होगी। नए नियमों के तहत गोल्ड ETFs को भी सोना वायदा का दर्जा मिला है।

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Neal Bhai has been involved in the Bullion and Metals markets since 1998 – he has experience in many areas of the market from researching to trading and has worked in Delhi, India. Mobile No. - 9899900589 and 9582247600

10 thoughts on “कमोडिटी मार्केट में म्यूचुअल फंडों की एंट्री का रास्ता साफ”

  1. दिल्ली की सत्ता की चाभी देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में बनती है। अगर दिल्ली दरबार का जंग जीतना है तो उत्तर प्रदेश को जीतना जरूरी है। इस रणनीति को सभी राजनीतिक दल भली भांति समझते हैं। उत्तर प्रदेश सबसे पिछड़े प्रदेशों में गिना जाता है। लेकिन यही उत्तर प्रदेश है जिसकी कोख से आजादी के बाद अब तक 9 प्रधानमंत्री निकले हैं। लिहाजा इस धुरी पर हर राजनीतिक दल की निगाह बगुले की तरह रहती है। पिछले दो दशक तक यह प्रदेश सपा-बसपा के कब्जे में रहा। सबको हर पांच साल के बाद जनता नकार देती थी। बाद में प्रदेश की राजनीति में बपसा को पूर्ण बहुमत मिला फिर सपा को भी पूर्ण बहुमत मिला। हालात यहां तक पहुंच गए कि सपा-बसपा दोनों का पत्ता साफ हो गया। जब बिल्कुल खतरे में नजर आया तो सपा-बसपा ने हाथ मिलाने में बिल्कुल भी कोताही नहीं बरती।

  2. लोकसभा चुनाव 2019 की लड़ाई सपा-बसपा ने मिलकर लड़ी। हालांकि राष्ट्रीय लोक दल को भी शामिल किया। लेकिन नतीजा वही निकला। सपा-बसपा जहां थी, वहीं पहुंच गई। सपा-बसपा के इस गठबंधन में मायावती ने अपने वो गम भी भुल दिए जो सपाइयों ने लखनऊ के गेस्ट हाउस में उनको दिया था। इस पूरे चुनाव में दोनों ने गजब की एकजुटता दिखाई। पहली बार है कि मुलायम सिंह यादव का प्रचार करने के लिए बहन जी सामने आई। पहली बार ये भी हुआ कि यादव खानदान की बहू ने सार्वजनिक मंच पर वरिष्ठता का खयाल रखते हुए बहन जी के चरण स्पर्श किए। इस चरण स्पर्श से सियासी मैदान में ये संदेश गया कि यादवों का अहंकार बहन जी ने खत्म कर दिया है।

  3. अखिलेश यादव ने जब 2017 विधान सभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से हाथ मिलया तो इन्हें यूपी के लड़के नाम से पुकारा जाने लगा। लेकिन ये गठबंधन भी मोदी ब्रिगेड को नहीं रोक पाया और राज्य में बीजेपी ने सरकार बना ली। जिसमें सीएम का पद योगी आदित्यनाथ को मिला।

  4. इस बीच लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान योगी और अखिलेश ने एक दूसरे के खिलाफ खूब राजनीतिक बयान दिए। अखिलेश एक मझे हुए राजनीतिक खिलाड़ी की भूमिका में नजर आए। लेकिन यह राजनीति है। यहां सारे विकल्प सबके लिए खुले होते हैं। किसी जमाने में जब अखिलेश मुख्यमंत्री थे। तब बसपा और अन्य रजनीतिक दलों का कथन था कि सपा में ढाई मुख्यमंत्री हैं। बाद में ये बुआ-बबुआ पर आ गए। हालंकि इस लोकसभा चुनाव की जंग जीतने के लिए बुआ-बबुआ के रिश्ते में नजदीकियां बढ़ी। लेकिन नजदीकियां भी सत्ता का स्वाद न चखा पाई।

  5. 2017 के विधान सभा चुनाव से ठीक पहले सपा कुनबे में विरासत को लेकर जंग हुई। पहली बार है कि यादव खानदान का पारिवारिक झगड़ा कई दिनों तक मीडिया में छाया रहा। और फाइनली अखिलेश ने अपने पिता से सपा की गद्दी हथिया ली। और मुलायम सिंह यादव सपा के संरक्षक तो सपा के मुखिया अब अखिलेश यादव बन गए।

  6. मुख्यमंत्री रहते सपा मुखिया ने सावर्जनिक स्थल पर अखिलेश को डांटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। शायद इसमें भी कोई बड़ी राजनीति रही होगी। कुल मिलाकर लोकसभा के चुनाव में अखिलेश की एकजुटता तो नजर आई, लेकिन जो लक्ष्य था उसे नहीं भेद सके।

  7. अखिलेश यादव को राजनीति में आने के लिए पिता मुलायम सिंह यादव का विशेष आशीर्वाद मिला। तभी वो 38 साल के उम्र के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने। अखिलेश की राजनीतिक पारी की शुरुआत साल 2000 में कन्नौज लोकसभा उपचुनाव से हुई थी। साल 2004 और 2009 में कन्नौज से चुनाव जीते।

  8. एक जुलाई 1973 को इटावा के सैफेई में जन्मे अखिलेश ने अपनी पढ़ाई राजस्थान के धौलपुर सैन्य स्कूल में की । बाद में उन्होंने पर्यावरण इंजीनियरिंग में मैसूर विश्वविदयालय से डिग्री हासिल की । फिर उन्होंने आस्ट्रेलिया के सिडनी से मस्टर डिग्री हासिल की।

    अखिलेश यादव और डिंपल की तीन संताने है, अदिति,अर्जुन और टीना ।

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